मन की वेदना से फूटते दर्द को बिसारने के लिए ,
आज मेरेपिता
मैं तुम्हारी गोद में सर रखकर ,
मासूम बच्ची की तरह रोना चाहती थी |
लेकिन बचपन से आज तक हमेशा की तरह,
आज भी ,अपने ह्र्दय से जेसे तुमने मुझे चीर के अलग कर दिया हो |
मुझमे अपना अस्तित्व छोडकर ,मुझसे दूर खड़ेहो ,
शायद ये मेरे अनन्य अनुराग की अंतिम आवश्यकता थी,
जो तुम्हरा वात्सल्य चाहती थी आज एक मासूम की तरह की तरह
तुम बहुत बड़े चिन्तक , विचारक ,साहित्यकार,
विद्वान और असाधरण दर्द के स्वामी हो ,
पर कभी न समझ पाए अपनी इस बेटी की वेदना ,
हमेशा से ही तुम ग्रसित रहे हो अपने पुत्र मोह से ,
क्या चाहती थी में तुमसे ?
बस ,इतना ही की एक बार तुम्हारी गोद में सर रखकर रो लू ,
और कहू की कब अंत होगा मेरी परिक्षाओ का ,
अब नहीं ,
लेकिन आज का ये इनकार मेरे पिता और ज्यादा ठीक था |
तुमने मुझे बेहद मजबूत खड़ा कर दिया हैं इस दर्द के खिलाफ ,
अब टूट के नहीं बिखरेगी तुम्हारी ये अनुभूति
सारे रिश्ते झूठे पड़े हैं मेरी दुनिया में ,
चाहे माँ हो ,
हां ,माँ तुम्हारी दूसरी बेटियों की तरह में नहीं मांग सकती ,
मैं कहूँगी नहीं , मेरा दर्द समझना होगा ,माँ ,
मुझेतेरी गोद में सर रखकर रोना हैं क्योकि शायद में कभी न बन सकू माँ
क्या बिन कहे ,मेरी ख़ामोशी को समझ सकोगी ,मेरी ये मौन भाषा समझ सकोगी ?
या फिर ये ही कहोगी ,
की तू कुछ मत कहना ,बस यूँ ही किसी कोने में रोती रहना !
हां , माँ तू जानती हैं मैं नहीं कह पायी किसी से ,
क्योकि मैं नहीं देना चाहती थी अपने दुर्भाग्य की छाया भी किसी को |
घंटो पति के सामने रोती रही , गुहार लगाती रही की अब तो कुछ बोलो ,मुझे सुनो ,कुछ तो बात् करो ,
मैं समुद्र किनारे खड़ी गुहार लगाती रही , उस चट्टान से हर बार टकराती रही , रोती रही ,
पर वो पत्थर भाव शून्य था |
जो मुझे रोते देख ,बस खामोश देखता ही रहा हमेशा |
मुझे तो पसंद हैं दूसरों के महकते आँगन और उनकी मुस्कुराहटें
क्योकि मेरे पास वो कुछ भी नहीं रहा,
मैं पीना चाहती हूँ इस दुनिया का सारा दर्द और बांट देना चाहती हूँ
अपनी मुस्कुराहटें इस दुनिया के लोगो के लिए ,
मेरे पास मेरा तन , मन , धन सब कुछ अस्तित्व हैं हैं प्रभु
ये मन तेरे सिवा अब कुछ नहीं चाहता,
और राम नाम के सिवा और कोई धन मेरे पास हैं ही नहीं
इसीलिए मेरी अंत हीन भक्ति को अपने चरणों में स्वीकार कर
मेरे पथप्रदर्शक बन मेरे ये शब्द ,
मेरा ये दर्द और मेरी सारी मुस्कुराहटें,
तुझे अर्पण हैं
मेरे श्री राम |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें